Monday, April 12, 2010

चिट्ठियां

चिट्ठियां रही हैं हमेशा मेरे घर में

लोहे के एक तार से बंधी हुई

चिट्ठियों से झांकते हैं चेहरे

ससुराल में दुख पा रही बहनों के

दो-दो बेटों के बाप बन गए दोस्तों के

खुश-खुश फूल बांटती हुई लड़कियों के

चिट्ठियों से झांकते हैं दुख गहरे

आंसू अवसाद विषाद

करुणा समाई हुई चिट्ठियों में

तार बंधी हुई चिट्ठियों में ।

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