अंडमान के नारियल से लदे वृक्षों
मैं आऊंगा अंबर्डीन, बिल्लीग्राउंड
बम्बूफ्लाट, मीठाखाड़ी, हाथीटापू, जंगलीघाट
डिगलीपुर, हैडो, गोलघर, चाथम और सीपीघाट के तबाह घाट
मैं फिर आऊंगा।
ओ नन्हीं और लम्बी छिपकलियों।
दूर देष से मैं फिर आऊंगा, मेरी बांह जितनी लम्बी तरोई,
करेले और नीम और नारियल और मिर्ची
ओ समुद्र! मैं फिर आऊंगा।
ओ! स्टोव पर घर भर का खाना बनाती औरत
ओ! पेड़ को काटकर नाव बनाते मल्लाह
ओ! छतरी लेकर समुंदर में जाल फैलाए मछुआरे
और उनके हाथ न आती मोटी मछलियों
मैं आऊंगा।
साफ सुबह के आसमान
साफ सुबह के पेड़ों और पहाड़ों मैं फिर आऊंगा।
ओ बूढ़े हज्जाम।
केरल के एक गांव में शताब्दियों पहले आए
मैं फिर आऊंगा अगली शताब्दी में
तुम्हीं से अपने बाल काले कराऊंगा।
मुझे पहचानना।
मुझे भूल न जाना।
ओ नन्हीं छिपकली
मैं फिर आऊंगा।
Tuesday, April 13, 2010
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