चिट्ठियां रही हैं हमेशा मेरे घर में
लोहे के एक तार से बंधी हुई
चिट्ठियों से झांकते हैं चेहरे
ससुराल में दुख पा रही बहनों के
दो-दो बेटों के बाप बन गए दोस्तों के
खुश-खुश फूल बांटती हुई लड़कियों के
चिट्ठियों से झांकते हैं दुख गहरे
आंसू अवसाद विषाद
करुणा समाई हुई चिट्ठियों में
तार बंधी हुई चिट्ठियों में ।
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